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मासिक पाठ - Hindi

Lalita Sahasranama

ललितासहस्रनाम

मासिक SVFT पाठ

It's advisable to contact Trust management, before you join the path.

ॐ शक्ति

परशुराम कृत कल्पसूत्र में उल्लेख है कि यह पाठ समस्त रोगों का निवारण करने वाला, समस्त धन और जीवन-आरोग्य की वृद्धि करने वाला है। इसका पाठ अपनी सुविधानुसार या असो नवरात्रि या पुष्यमार्ति, सूर्यसंक्रांति के दिन, शुक्ल पक्ष, चतुर्दशी, अष्टमी, नवमी या शुक्रवार, पूर्णिमा तिथि, दीपावली या स्वयं के जन्मदिन पर करने से अद्भुत फल मिलता है।

श्री अगस्त्य मुनि यह भी कहते हैं कि इस श्री ललितासहस्रनाम का पाठ करने से, श्री माँ ललिताम्बा प्रसन्न होती हैं और भक्त को राज्य प्रदान करती हैं और राक्षसों और नवग्रहों को शांत करती हैं, भले ही वे जन्म कुंडली में पीड़ित हों। इस पाठ को करने वाला व्यक्ति लक्ष्मी, पुत्र और पौत्रों को प्राप्त करता है, वांछित के रूप में बलिदान करता है और सभी इच्छाओं को प्राप्त करता है और सभी सौभाग्य प्राप्त करता है। जैसे भक्त पिछले जन्म में श्रीविद्या का उपासक बनता है, वैसे ही ललिता सहस्रनाम का पाठ करने वाला मनुष्य भी भक्ति से मुक्त हो जाता है। इस प्रकार, भगवान हयग्रीव ऋषि अगस्त्य से कहते हैं कि-

मंत्रराज जपेशचैव चक्रराजार्चन तथा,
रहस्यनाम पाठश्च नलप्स्य तपस्रूपलाम।
अर्थ – कादि मन्त्र जप, श्री चक्र जप और श्री ललितासहस्रनाम का पाठ अवर्णनीय है।

पू. गुरुजी हमेशा हमें समझाते थे कि श्री त्रिपुराम्बा का प्रेम पाने के लिए ललिता सहस्रनाम स्तोत्र का पाठ करना चाहिए। इसलिए, SVFT के काफी सदस्यो लंबे समय से हर महीने सामूहिक रूप से पूर्णिमा पर गुरुजी के आदेशानुसार श्री ललितासहस्रनाम का जाप कर रहे थे। गुरुजी के प्यारे और ट्रस्ट के मानीते स्व. भागवतभाई ने भी जीवन भर इस बात पर जोर दिया कि यह पाठ हमेशा ट्रस्ट में किया जाए। लेकिन करोना-समय पर इस सामूहिक पाठ को रद्द करना पड़ा था। लेकिन अब समय की सुविधा और कई सदस्यों की इच्छा के कारण, ट्रस्ट फिर से श्री ललिता सहस्रनाम का सामूहिक पाठ शुरू करने के लिए तैयार है। तो इसमें आपके सहयोग के लिए धन्यवाद।

श्री ललितासहस्रनाम समुहिक पाठ की गाइड लाइन इस प्रकार रहेगी।

  • पाठ पूर्व निर्धारित रविवार 11 – 2 बजे में होगा।
  • पाठ Lawrenceville / Edison, NJ में आयोजित किया जाएगा लेकिन अगर कोई सदस्य जो नियमित रूप से पाठ में भाग लेता है, और यदि वह अपने घर पर पाठ करवाना चाहते है तो उसे SVFT Mgmt. को अगाऊ से सूचित करना होगा। यह पाठ Rotation & first come first के आधारित रखा जाएगा।
SVFT Lalita Path Schedule
Date Time Host Note
Sun-May 7th, 2023 11AM - 2PM SVFT Lawrenceville, NJ
Sun-Jun 11th, 2023 11AM - 2PM SVFT East Brunswick, NJ
Sun-Jul 2nd, 2023 11AM - 2PM SVFT Edison, NJ
Sun-Aug 6th, 2023 11AM - 2PM
Sun-Sep 3rd, 2023 11AM - 2PM
Sun-Oct 1st 2023 11AM - 2PM
Sun-Nov 2023 No Patha
Sun-Dec 3rd, 2023 11AM - 2PM
Sun-Jan 11AM - 2PM
Sun-Feb 11Am - 2PM
Sun-Mar 11AM - 2PM
Sun-Apr 11AM - 2PM

श्री ललिता सहस्रनाम पाठका महत्व

यथामधुये पुष्पैभ्यौ, धृतं दुग्धाद रसात्पयः ।
एवं हि सर्व तंत्रानां श्रीविद्या सार मुच्यते ।।

अर्थातः

जैसे फूलों का सार शहद है। दूध का सार भी घी है। जैसे अन्य सभी रसों का सार दूध है, वैसे ही समस्त तंत्रशास्त्रों का सार श्रीविद्या है। इसलिए उपनिषद के ऋषियों ने संसार को संदेश दिया है कि सा विद्या या विमुच्यते।

ललितासहस्रनाम ब्रह्माण्डपुराण का एक भाग है। ब्रह्माण्डपुराण में इनका नाम ललितोपाख्यान है। ललितासहस्रनाम मूल रूप से अनेक स्थानों से प्रकाशित होता है। सर जॉन वुड्रूफ विल्सन ने तांत्रिक ग्रंथों में कई जगह इसका उल्लेख किया है। इसे संस्कृत में महान विद्वान साधक भास्कररायने सौभाग्यभास्कर नाम से परिभाषित किया है। इस स्तोत्र को अत्यंत लोकप्रिय बनाने का श्रेय उन्हें ही जाता है। उनका दीक्षित नाम भासुरानंदनाथ है।

ललितासहस्त्रनाम स्तोत्र को केवल स्तोत्र ही नहीं अपितु स्तोत्रमाला मंत्र नाम दिया गया है। मंत्र शास्त्र में बत्तीस अक्षरों से अधिक लंबे मंत्र को मालामंत्र कहा जाता है, और इसलिए सहस्रनाम केवल एक हजार नाम नहीं है बल्कि पूरे हजार नामों से बना एक मंत्र है।

ललिता सहस्रनाम, नामावली और फल श्रुति के पूर्व भाग में श्रीयंत्र और श्रीविद्या का कई बार उल्लेख किया गया है। ललिता सहस्रनाम के पाठ में भी श्रीयंत्र और श्रीविद्या के पूजन पर बल दिया गया है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि यह श्रीविद्या उपासना का प्रमुख स्तोत्र है। इसका उल्लेख पूर्व भाग और फल श्रुति के कई श्लोकों में मिलता है। नामावली में आने वाले श्रीदेवी के अधिकांश नाम चक्रराज की देवी और अधिष्ठात्री के नाम हैं। शरीर में स्थित चक्रों का वर्णन तथा कुण्डलिनी जागरण की प्रक्रिया का भी सूक्ष्म संकेतों द्वारा वर्णन किया गया है। यह भी स्पष्ट है कि ललितासहस्रनाम के लिए श्रीविद्या और श्रीयंत्र की साधना आवश्यक है और वह अधिकार दीक्षा से प्राप्त होता है।

तंत्रशास्त्र को साधनाशास्त्र माना जाता है। यह साधना तंत्र-मंत्र और यंत्र का संगम है। तंत्र साधना में महाविद्या का स्थान सर्वोपरि माना गया है। महाविद्या के दस भेद माने गए हैं अर्थात् आद्यशक्ति के दस रूप या दस महाशक्तियाँ हैं। जिसके आधार पर उनकी पूजा की जाती है।

श्रीत्रिपुरसुंदरी की साधना ही श्रीविद्या कहलाती है। श्रीत्रिपुरभैरवी और कामकलात्मिका भी ज्यादातर श्रीविद्या से जुड़ी हैं। श्रीत्रिपुरसुंदरी को षोडशी, भुवनेश्वरी, राजराजेश्वरी, श्रीविद्या और ललिता भी कहा जाता है। कामकलत्मिका और कमला (लक्ष्मी) में ज्यादा अंतर नहीं है। श्रीविद्या से भोग और मोक्ष दोनों की प्राप्ति होती है।

आद्यशक्ति मां त्रिपुरसुंदरी के एक हजार नाम हैं। जिसमें सबसे पहले नाम श्रीमाता का है। इन्हें महाराज्ञनी भी कहा जाता है और वो महाकालेश्वर को अपना स्वामी मानते हैं। ललितासहस्रनाम में उन्हें अंतिम नाम ललितांबिका से पहले शिवसंथाक्यरुपिणी कहा जाता है। इसे परभट्टारिका भी कहते हैं। इन्हें शास्त्रों में विद्या, महाविद्या और परमविद्या भी कहा गया है।

इस प्रकार, ललितासहस्रनाम स्तोत्र को केवल स्तोत्र कहने के बजाय स्तोत्र माला मंत्र का नाम दिया गया है। मन्त्र शास्त्र में बत्तीस से अधिक अक्षरों वाले मन्त्र को माला मन्त्र कहा जाता है और इस प्रकार सहस्रनाम मात्र एक सहस्र नाम ही नहीं होता अपितु सम्पूर्ण सहस्र नामों से मिलकर बना एक मन्त्र एक माला मन्त्र होता है, इस प्रकार इसका महत्व बताया गया है। तंत्र उपासना जिसमें उन देवी-देवताओं के यंत्र, विभिन्न अंग, मंत्र, स्तोत्र, ढाल, हृदय और सहस्र नाम शामिल हैं। तंत्र साधना में देवी स्तोत्र का विशेष महत्व बताया गया है। साथ ही शास्त्र के अनुसार कलियुग में शक्ति और गणपति जल्दी फलदायी हो जाते हैं। ऐसे तो अनेक देवी-देवता के सहस्र नाम प्रचलित हैं। इसमें ललिता सहस्रनाम का भी बहुत महत्व है, क्योंकि यह सहस्र नाम न केवल ललिता त्रिपुरसुंदरी की स्तुति करता है बल्कि श्रीचक्र अर्थात श्रीयंत्र की पूजा भी है। साथ ही उससे कुंडलिनी की शक्ति का अनावरण भी होता है। इसलिए यह स्तोत्र तंत्र शास्त्र में मुकुटमणि के समान है।

जब ललितासहस्रनाम का श्रीयंत्र पूजा अनुष्ठान में प्रयोग किया जाता है, तब यह अक्षय धनका दाता बन जाता है। इसलिए यह सहस्र नाम सिर्फ नामों का संग्रह नहीं बल्कि कुछ खास है। धन या संपत्ति की प्राप्ति आज के समय में हर व्यक्ति के लिए सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न है। श्रीयंत्र की विधिवत पूजा न होने पर भी यदि इसी ललितासहस्रनाम के किसी एक नाम का श्रीयंत्र पर अक्षत पुष्प से पूजन किया जाए, इंसान बहुत कुछ हासिल कर सकता है। यदि हम इस ललितासहस्रनाम का अर्थ श्रीविद्या मानते हैं तो भी यह अनुचित नहीं है।

ललितासहस्रनाम और श्रीविद्या में गुरु को अत्यधिक महत्व दिया गया है। केवल तंत्र में ही नहीं अपितु संपूर्ण आध्यात्मिक ज्ञान में गुरु का स्थान सर्वोपरि माना गया है। गुरु अनादि काल से किसी न किसी रूप में समाज में एक प्रतिष्ठित नाम रहा है। गुरु की स्थिति वैदिक काल से चली आ रही है। गुरु उपासना में निम्नलिखित श्लोकों का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है।

अखण्डमण्डलाकारं व्याप्तं येन चराचरम् ।
तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः ।।
अज्ञानतिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्जनशलाकया ।
चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः ।।

उपरोक्त श्लोक में यह स्पष्ट हो जाता है कि संसार में व्याप्त शक्ति का मार्गदर्शन करने वाले अखंडमंडलाकार की इस चराचर विश्वमें जो शक्ति है उसका मार्गदर्शन जो करे वो ही गुरु हैं। गुरु के माध्यम के बिना ज्ञान प्राप्त नहीं किया जा सकता है और अज्ञान की अज्ञानता को दूर नहीं किया जा सकता है। अज्ञान को दूर किए बिना अध्यात्म में प्रवेश नहीं किया जा सकता। किसी भी मार्ग पर चलने के लिए मंत्र हो या भक्ति, द्वैत हो या अद्वैत, लेकिन अज्ञान को हटाना होगा और यह कार्य कोई और नहीं बल्कि गुरु ही कर सकता है।

ज्ञान-अज्ञान, सद-असद, दोनों प्रवृत्तियाँ अपने-अपने अंतर में समान हैं, पर उसकी दिशा दिखाने में गुरु ही समर्थ है। साधक गुरु के मार्गदर्शन में ही सफलता संभव है। उसके लिए उसे गुरु के प्रति आस्था और विश्वास होना चाहिए। गुरु के माध्यम से ही मंत्र की सिद्धि होती है और वही साधक के हृदय में बीज को अंकुरित करने की शक्ति रखता है।

केवल शास्त्रों को पढ़ने और उनमें दर्शाए गए मंत्रों का जप करने से फल नहीं मिल सकता। इसमें मंत्र शक्ति और तपस्या दोनों का अभाव है। गुरु मुख से प्राप्त नहीं कीये हुए मंत्र एवम पाठ-जाप समय और ऊर्जा की बर्बादी है। मन्त्र साधना का यही सार है कि मन्त्र गुरु से प्राप्त होने पर ही शक्ति प्रदान करते हैं, क्योंकि गुरु मन्त्रों की शक्ति का स्रोत है। गुरु ही मंत्र में शक्ति का संचार करते हैं और शिष्य को देते हैं।

पूर्णिमा के दिन ललिता सहस्रनाम का जाप करने वाले मनुष्यको माँ ललिताकी कृपा, भौतिक सुख-शांति, एवं रोगों से रक्षा होगी और लंबी आयु भी सुनिश्चित होगी। इस स्तोत्र का जाप करने से पाठक को ग्रह परिवर्तन के कारण होने वाले दुष्प्रभावों को दूर करने में भी मदद मिलती है। संतान सुख के लिए इन 1000 नामों की एक खास विधि पूर्वक जाप कर के देवी मां को मक्खन अर्पित करना चाहीए।

श्री विद्या फाउंडेशन ट्रस्ट के मूल संस्थापक परम पूज्य गुरुजी श्री लक्ष्मीकांत पुरोहितजी की प्रेरणा से SVFT इस सेवा कार्य में कार्यरत है। ललिता सहस्रनाम पाठ श्रीयंत्र सम्मुख जो नर-नारी करते है वह माँ त्रिपुरम्बा की दिव्य शक्ति को प्राप्त करता है।

।। हिन्दी पाठ ।।

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