मासिक पाठ - Hindi
Lalita Sahasranama
ललितासहस्रनाम
मासिक SVFT पाठ
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ॐ शक्ति
परशुराम कृत कल्पसूत्र में उल्लेख है कि यह पाठ समस्त रोगों का निवारण करने वाला, समस्त धन और जीवन-आरोग्य की वृद्धि करने वाला है। इसका पाठ अपनी सुविधानुसार या असो नवरात्रि या पुष्यमार्ति, सूर्यसंक्रांति के दिन, शुक्ल पक्ष, चतुर्दशी, अष्टमी, नवमी या शुक्रवार, पूर्णिमा तिथि, दीपावली या स्वयं के जन्मदिन पर करने से अद्भुत फल मिलता है।
श्री अगस्त्य मुनि यह भी कहते हैं कि इस श्री ललितासहस्रनाम का पाठ करने से, श्री माँ ललिताम्बा प्रसन्न होती हैं और भक्त को राज्य प्रदान करती हैं और राक्षसों और नवग्रहों को शांत करती हैं, भले ही वे जन्म कुंडली में पीड़ित हों। इस पाठ को करने वाला व्यक्ति लक्ष्मी, पुत्र और पौत्रों को प्राप्त करता है, वांछित के रूप में बलिदान करता है और सभी इच्छाओं को प्राप्त करता है और सभी सौभाग्य प्राप्त करता है। जैसे भक्त पिछले जन्म में श्रीविद्या का उपासक बनता है, वैसे ही ललिता सहस्रनाम का पाठ करने वाला मनुष्य भी भक्ति से मुक्त हो जाता है। इस प्रकार, भगवान हयग्रीव ऋषि अगस्त्य से कहते हैं कि-
मंत्रराज जपेशचैव चक्रराजार्चन तथा,
रहस्यनाम पाठश्च नलप्स्य तपस्रूपलाम।
अर्थ – कादि मन्त्र जप, श्री चक्र जप और श्री ललितासहस्रनाम का पाठ अवर्णनीय है।
पू. गुरुजी हमेशा हमें समझाते थे कि श्री त्रिपुराम्बा का प्रेम पाने के लिए ललिता सहस्रनाम स्तोत्र का पाठ करना चाहिए। इसलिए, SVFT के काफी सदस्यो लंबे समय से हर महीने सामूहिक रूप से पूर्णिमा पर गुरुजी के आदेशानुसार श्री ललितासहस्रनाम का जाप कर रहे थे। गुरुजी के प्यारे और ट्रस्ट के मानीते स्व. भागवतभाई ने भी जीवन भर इस बात पर जोर दिया कि यह पाठ हमेशा ट्रस्ट में किया जाए। लेकिन करोना-समय पर इस सामूहिक पाठ को रद्द करना पड़ा था। लेकिन अब समय की सुविधा और कई सदस्यों की इच्छा के कारण, ट्रस्ट फिर से श्री ललिता सहस्रनाम का सामूहिक पाठ शुरू करने के लिए तैयार है। तो इसमें आपके सहयोग के लिए धन्यवाद।
श्री ललितासहस्रनाम समुहिक पाठ की गाइड लाइन इस प्रकार रहेगी।
- पाठ पूर्व निर्धारित रविवार 11 – 2 बजे में होगा।
- पाठ Lawrenceville / Edison, NJ में आयोजित किया जाएगा लेकिन अगर कोई सदस्य जो नियमित रूप से पाठ में भाग लेता है, और यदि वह अपने घर पर पाठ करवाना चाहते है तो उसे SVFT Mgmt. को अगाऊ से सूचित करना होगा। यह पाठ Rotation & first come first के आधारित रखा जाएगा।
Date | Time | Host | Note |
---|---|---|---|
Sun-May 7th, 2023 | 11AM - 2PM | SVFT | Lawrenceville, NJ |
Sun-Jun 11th, 2023 | 11AM - 2PM | SVFT | East Brunswick, NJ |
Sun-Jul 2nd, 2023 | 11AM - 2PM | SVFT | Edison, NJ |
Sun-Aug 6th, 2023 | 11AM - 2PM | ||
Sun-Sep 3rd, 2023 | 11AM - 2PM | ||
Sun-Oct 1st 2023 | 11AM - 2PM | ||
Sun-Nov 2023 | No Patha | ||
Sun-Dec 3rd, 2023 | 11AM - 2PM | ||
Sun-Jan | 11AM - 2PM | ||
Sun-Feb | 11Am - 2PM | ||
Sun-Mar | 11AM - 2PM | ||
Sun-Apr | 11AM - 2PM |
श्री ललिता सहस्रनाम पाठका महत्व
यथामधुये पुष्पैभ्यौ, धृतं दुग्धाद रसात्पयः ।
एवं हि सर्व तंत्रानां श्रीविद्या सार मुच्यते ।।
अर्थातः
जैसे फूलों का सार शहद है। दूध का सार भी घी है। जैसे अन्य सभी रसों का सार दूध है, वैसे ही समस्त तंत्रशास्त्रों का सार श्रीविद्या है। इसलिए उपनिषद के ऋषियों ने संसार को संदेश दिया है कि सा विद्या या विमुच्यते।
ललितासहस्रनाम ब्रह्माण्डपुराण का एक भाग है। ब्रह्माण्डपुराण में इनका नाम ललितोपाख्यान है। ललितासहस्रनाम मूल रूप से अनेक स्थानों से प्रकाशित होता है। सर जॉन वुड्रूफ विल्सन ने तांत्रिक ग्रंथों में कई जगह इसका उल्लेख किया है। इसे संस्कृत में महान विद्वान साधक भास्कररायने सौभाग्यभास्कर नाम से परिभाषित किया है। इस स्तोत्र को अत्यंत लोकप्रिय बनाने का श्रेय उन्हें ही जाता है। उनका दीक्षित नाम भासुरानंदनाथ है।
ललितासहस्त्रनाम स्तोत्र को केवल स्तोत्र ही नहीं अपितु स्तोत्रमाला मंत्र नाम दिया गया है। मंत्र शास्त्र में बत्तीस अक्षरों से अधिक लंबे मंत्र को मालामंत्र कहा जाता है, और इसलिए सहस्रनाम केवल एक हजार नाम नहीं है बल्कि पूरे हजार नामों से बना एक मंत्र है।
ललिता सहस्रनाम, नामावली और फल श्रुति के पूर्व भाग में श्रीयंत्र और श्रीविद्या का कई बार उल्लेख किया गया है। ललिता सहस्रनाम के पाठ में भी श्रीयंत्र और श्रीविद्या के पूजन पर बल दिया गया है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि यह श्रीविद्या उपासना का प्रमुख स्तोत्र है। इसका उल्लेख पूर्व भाग और फल श्रुति के कई श्लोकों में मिलता है। नामावली में आने वाले श्रीदेवी के अधिकांश नाम चक्रराज की देवी और अधिष्ठात्री के नाम हैं। शरीर में स्थित चक्रों का वर्णन तथा कुण्डलिनी जागरण की प्रक्रिया का भी सूक्ष्म संकेतों द्वारा वर्णन किया गया है। यह भी स्पष्ट है कि ललितासहस्रनाम के लिए श्रीविद्या और श्रीयंत्र की साधना आवश्यक है और वह अधिकार दीक्षा से प्राप्त होता है।
तंत्रशास्त्र को साधनाशास्त्र माना जाता है। यह साधना तंत्र-मंत्र और यंत्र का संगम है। तंत्र साधना में महाविद्या का स्थान सर्वोपरि माना गया है। महाविद्या के दस भेद माने गए हैं अर्थात् आद्यशक्ति के दस रूप या दस महाशक्तियाँ हैं। जिसके आधार पर उनकी पूजा की जाती है।
श्रीत्रिपुरसुंदरी की साधना ही श्रीविद्या कहलाती है। श्रीत्रिपुरभैरवी और कामकलात्मिका भी ज्यादातर श्रीविद्या से जुड़ी हैं। श्रीत्रिपुरसुंदरी को षोडशी, भुवनेश्वरी, राजराजेश्वरी, श्रीविद्या और ललिता भी कहा जाता है। कामकलत्मिका और कमला (लक्ष्मी) में ज्यादा अंतर नहीं है। श्रीविद्या से भोग और मोक्ष दोनों की प्राप्ति होती है।
आद्यशक्ति मां त्रिपुरसुंदरी के एक हजार नाम हैं। जिसमें सबसे पहले नाम श्रीमाता का है। इन्हें महाराज्ञनी भी कहा जाता है और वो महाकालेश्वर को अपना स्वामी मानते हैं। ललितासहस्रनाम में उन्हें अंतिम नाम ललितांबिका से पहले शिवसंथाक्यरुपिणी कहा जाता है। इसे परभट्टारिका भी कहते हैं। इन्हें शास्त्रों में विद्या, महाविद्या और परमविद्या भी कहा गया है।
इस प्रकार, ललितासहस्रनाम स्तोत्र को केवल स्तोत्र कहने के बजाय स्तोत्र माला मंत्र का नाम दिया गया है। मन्त्र शास्त्र में बत्तीस से अधिक अक्षरों वाले मन्त्र को माला मन्त्र कहा जाता है और इस प्रकार सहस्रनाम मात्र एक सहस्र नाम ही नहीं होता अपितु सम्पूर्ण सहस्र नामों से मिलकर बना एक मन्त्र एक माला मन्त्र होता है, इस प्रकार इसका महत्व बताया गया है। तंत्र उपासना जिसमें उन देवी-देवताओं के यंत्र, विभिन्न अंग, मंत्र, स्तोत्र, ढाल, हृदय और सहस्र नाम शामिल हैं। तंत्र साधना में देवी स्तोत्र का विशेष महत्व बताया गया है। साथ ही शास्त्र के अनुसार कलियुग में शक्ति और गणपति जल्दी फलदायी हो जाते हैं। ऐसे तो अनेक देवी-देवता के सहस्र नाम प्रचलित हैं। इसमें ललिता सहस्रनाम का भी बहुत महत्व है, क्योंकि यह सहस्र नाम न केवल ललिता त्रिपुरसुंदरी की स्तुति करता है बल्कि श्रीचक्र अर्थात श्रीयंत्र की पूजा भी है। साथ ही उससे कुंडलिनी की शक्ति का अनावरण भी होता है। इसलिए यह स्तोत्र तंत्र शास्त्र में मुकुटमणि के समान है।
जब ललितासहस्रनाम का श्रीयंत्र पूजा अनुष्ठान में प्रयोग किया जाता है, तब यह अक्षय धनका दाता बन जाता है। इसलिए यह सहस्र नाम सिर्फ नामों का संग्रह नहीं बल्कि कुछ खास है। धन या संपत्ति की प्राप्ति आज के समय में हर व्यक्ति के लिए सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न है। श्रीयंत्र की विधिवत पूजा न होने पर भी यदि इसी ललितासहस्रनाम के किसी एक नाम का श्रीयंत्र पर अक्षत पुष्प से पूजन किया जाए, इंसान बहुत कुछ हासिल कर सकता है। यदि हम इस ललितासहस्रनाम का अर्थ श्रीविद्या मानते हैं तो भी यह अनुचित नहीं है।
ललितासहस्रनाम और श्रीविद्या में गुरु को अत्यधिक महत्व दिया गया है। केवल तंत्र में ही नहीं अपितु संपूर्ण आध्यात्मिक ज्ञान में गुरु का स्थान सर्वोपरि माना गया है। गुरु अनादि काल से किसी न किसी रूप में समाज में एक प्रतिष्ठित नाम रहा है। गुरु की स्थिति वैदिक काल से चली आ रही है। गुरु उपासना में निम्नलिखित श्लोकों का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है।
अखण्डमण्डलाकारं व्याप्तं येन चराचरम् ।
तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः ।।
अज्ञानतिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्जनशलाकया ।
चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः ।।
उपरोक्त श्लोक में यह स्पष्ट हो जाता है कि संसार में व्याप्त शक्ति का मार्गदर्शन करने वाले अखंडमंडलाकार की इस चराचर विश्वमें जो शक्ति है उसका मार्गदर्शन जो करे वो ही गुरु हैं। गुरु के माध्यम के बिना ज्ञान प्राप्त नहीं किया जा सकता है और अज्ञान की अज्ञानता को दूर नहीं किया जा सकता है। अज्ञान को दूर किए बिना अध्यात्म में प्रवेश नहीं किया जा सकता। किसी भी मार्ग पर चलने के लिए मंत्र हो या भक्ति, द्वैत हो या अद्वैत, लेकिन अज्ञान को हटाना होगा और यह कार्य कोई और नहीं बल्कि गुरु ही कर सकता है।
ज्ञान-अज्ञान, सद-असद, दोनों प्रवृत्तियाँ अपने-अपने अंतर में समान हैं, पर उसकी दिशा दिखाने में गुरु ही समर्थ है। साधक गुरु के मार्गदर्शन में ही सफलता संभव है। उसके लिए उसे गुरु के प्रति आस्था और विश्वास होना चाहिए। गुरु के माध्यम से ही मंत्र की सिद्धि होती है और वही साधक के हृदय में बीज को अंकुरित करने की शक्ति रखता है।
केवल शास्त्रों को पढ़ने और उनमें दर्शाए गए मंत्रों का जप करने से फल नहीं मिल सकता। इसमें मंत्र शक्ति और तपस्या दोनों का अभाव है। गुरु मुख से प्राप्त नहीं कीये हुए मंत्र एवम पाठ-जाप समय और ऊर्जा की बर्बादी है। मन्त्र साधना का यही सार है कि मन्त्र गुरु से प्राप्त होने पर ही शक्ति प्रदान करते हैं, क्योंकि गुरु मन्त्रों की शक्ति का स्रोत है। गुरु ही मंत्र में शक्ति का संचार करते हैं और शिष्य को देते हैं।
पूर्णिमा के दिन ललिता सहस्रनाम का जाप करने वाले मनुष्यको माँ ललिताकी कृपा, भौतिक सुख-शांति, एवं रोगों से रक्षा होगी और लंबी आयु भी सुनिश्चित होगी। इस स्तोत्र का जाप करने से पाठक को ग्रह परिवर्तन के कारण होने वाले दुष्प्रभावों को दूर करने में भी मदद मिलती है। संतान सुख के लिए इन 1000 नामों की एक खास विधि पूर्वक जाप कर के देवी मां को मक्खन अर्पित करना चाहीए।
श्री विद्या फाउंडेशन ट्रस्ट के मूल संस्थापक परम पूज्य गुरुजी श्री लक्ष्मीकांत पुरोहितजी की प्रेरणा से SVFT इस सेवा कार्य में कार्यरत है। ललिता सहस्रनाम पाठ श्रीयंत्र सम्मुख जो नर-नारी करते है वह माँ त्रिपुरम्बा की दिव्य शक्ति को प्राप्त करता है।
।। हिन्दी पाठ ।।
॥ शुद्धिकरण – पवित्रीकरण मंत्र ॥
ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपिवा॥
यः स्मरेत्पुण्डरीकाक्षं स बाह्यभ्यन्तरः शुचिः॥
॥ गणेश स्तोत्र ॥
वक्रतुंड महाकाय, सुर्यकोटी समप्रभा ।
निर्वध्नम् कुरुमे देव, सर्व कार्यशु सुवर्दा ।।
॥ गुरुध्यान ॥
ध्यानमूलं गुरुमूर्तिः, पूजामूलं गुरुर्पदम् ।
मंत्रमूलं गुरुर्वाक्यं, मोक्षमूलं गुरुर्नृपा ।।
॥ गुरुपादुका पंचकम् ॥
ॐ नमो गुरुभ्यो गुरु पादुकाभ्यो, नमः परेभ्यः पर पादुकाभ्य:
आचार्य सिध्धेश्वर पादुकाभ्यो, नमो नमः श्री गुरुपादुकाभ्याम् //१//
ऐंकार ह्रींकार रहस्य युक्ता, श्रींकार गूढ़ार्थ महाविभूत्या
ओमकार मर्म प्रतिपादिनीभ्याम्, नमो नमः श्री गुरुपादुकाभ्याम् //२//
होत्राग्नि हौत्राग्नि हविष्य होत्र, होमादि सर्वाकृति भासमानम्
यद् ब्रह्मतद बोध वितारिणीभ्याम्, नमोनमः श्री गुरुपादुकाभ्याम् //३//
कामादि सर्पव्रज गारुडाभ्याम्, विवेक वैराग्य निधि प्रदाभ्याम्
बोध प्रदाभ्याम् द्रुत मोक्षदाभ्याम्, नमोनमः श्री गुरुपादुकाभ्याम् //४//
अनंत संसार समुद्र तारा, नौकायिताभ्याम् स्थिर भक्तिदाभ्याम्
जाड्याब्धि संशोषण वाड़ वाभ्याम्, नमो नमः श्रीगुरुपादुकाभ्याम् //५//
।। दत्त बावनी ।।
जय योगेश्वर दत्त दयाल तू एक जग महाप्रतिपाल।
अत्रि अनसूया करि निमित, प्रगट्यो जग कारण निश्चित।।
भ्रह्मा हरिहर नो अवतार, शरणा गत नो तारण हार।
अंतर्यामी सत चित सुख, बहार सद्गुरु ध्रिभुज सुमुख।।
जोली अन्नपूर्णा करमाय, शांति कमंडर कर शोहाय।
क्याय चतुर्भुज षड्भुज शाद, अनंत बाहु तू निर्धार।।
आव्यो शरणे बाल अजाण, उठ दिगंबर चाल्या प्राण।
सुणी अर्जुन केरो साद, रिज्यो पूर्वे तू साक्षात्।।
दीधी रिद्धि सिद्धि अपार, अन्ते मुक्ति महापद सार।
कीधो आजे केम विलम्ब, तुज विन मुजने ना आलम्ब।।
विष्णु शर्म द्रीज तार्यो एम् जम्यो श्राद्ध माँ देखि प्रेम।
जम्म दैत्य थी त्रास्या देव, कीधी महेर ते त्या ततखेव।।
विस्तारी माया दितिसुत इन्द्र करें हाणाव्यो तूर्त।
ऐवी लीला कई कई शर्व कीधी वर्णवे को ते सर्वे।।
दोड्यो आयु शुतने काम कीधो ऐने ते निष्काम।
बोडया यदु ने परशुराम शाध्य देव प्रहलाद अकाम।
ऐवि तारी कृपा अगाध केम सुने ना मारो साद।
दौड़ अंत ना देख अनंत, माँ कर अध्वच शिशु नो अंत।।
जोई डिजस्त्री केरो स्नेह थयो पुत्र तू नि:संदेह।
स्मृतगामी कलितार कृपाल, तार्यो धोबी चेक गमार।।
पेट पीड़ थी विप्र, भ्रह्माण शेठ उगार्यो श्रीप।
करे केम ना मारी वार जो आणि गम एकज वार।।
शुष्क काष्ठ ने आन्या पत्र थयो केम उदासीन अत्र।
ज़ंज़र वंध्या केरा स्वप्न कर्या सफल ते सूत ना कृत्स्न।।
करि दूर भ्रह्माण ना कोढ़ कीधा पुराण तेने कोढ़।
वंध्या भेस दुजवी देव हर्युं दारिद्र ते ततखेव।।
झालर खाई रिज्यो एम दीधो सुवर्णघट स प्रेम।।
भ्रह्माण स्त्री नो मृत भरथार कीधो सजीवन ते निर्धार।
पिचास पीड़ा कीधी दूर विप्र पुत्र उठादियो सुर।
हरी विप्रमद अत्यंज हाथ रक्ष्यो भक्त तिविक्रम तात।।
निमेष मात्रे तन्तुक एक पहोचादियो श्री शैले देख।
एकी साथै आठ स्वरुप धरीदेव बहुरुप अरूप।।
सन्तोस्या निज भक्त सुजात आपि परचाओ साक्षात्।
यवनराज नी ताणी पीड़ जात पातनी तने ना चीड़।।
रामकृष्ण रुपे ते एम् कीधी लीलाओ कई तेम।
तार्या पथ्थर गणिका व्याध पशु पंखी पन तुजने साध।।
अधम ओधारण तारु नाम गाता सरे ऐना सा सा काम।
आधी व्याधि उपाधि सर्वे तणे स्मरण मात्र थी सर्वे।।
मुठ चोट ना लागे जाण पामे नर स्मरणे निर्माण।
डाकण साकण भेसा सुर भुत पिचशो जंड असुर।।
नासे मुठी दइने तूर्त दत्त धुन संभरता मूर्त।
करी धुप गाये जे एम् दत्तबावनी आशा प्रेम।।
सुधरे तेना बन्ने लोक रहने तेने क्याय शोक।
दासी सिद्धि तेनी थाय दुःख दारिद्र तेना जाय।।
बावन गुरुवार नित्य नियम करे पाठ बावन स प्रेम।
यथा अवकाशे नित्य नियम तेने कड़ी ना डंडे यम।।
अनेक रुपे एज अभंग भजता नड़े ना माया रंग।
सहस्त्र नामे नामी एक दत्त दिगंबर असंग छैक।।
वंदु तुजने वारं वार वेद श्वास तारा निर्धार।
थाके वर्णव ता ज्या शेष कोण रांक हु बहु कृत वेश।।
अनुभव तृप्ति नो उदगार सुणी हसे ते खासे मार।
तपसी तत्वमसि ए देव बोलो जय जय श्री गुरुदेव।।
अवधूत चिंतन गुरु देवदत्त – दत्त बावनी सम्पूर्णम्
।। शिवपंचाक्षर स्तोत्र ।।
नागेंद्रहाराय त्रिलोचनाय, भस्मांगरागाय महेश्वराय ।
नित्याय शुद्धाय दिगंबराय, तस्मै “न” काराय नमः शिवाय ॥ 1 ॥
मंदाकिनी सलिल चंदन चर्चिताय, नंदीश्वर प्रथमनाथ महेश्वराय ।
मंदारपुष्प बहुपुष्प सुपूजिताय, तस्मै “म” काराय नमः शिवाय ॥ 2 ॥
शिवाय गौरी वदनाब्ज बृंद, सूर्याय दक्षाध्वर नाशकाय ।
श्री नीलकंठाय वृषभध्वजाय, तस्मै “शि” काराय नमः शिवाय ॥ 3 ॥
वशिष्ठ कुंभोद्भव गौतमार्य, मुनींद्र देवार्चितशेखराय ।
चंद्रार्क वैश्वानर लोचनाय, तस्मै “व” काराय नमः शिवाय ॥ 4 ॥
यज्ञ स्वरूपाय जटाधराय, पिनाक हस्ताय सनातनाय ।
दिव्याय देवाय दिगंबराय, तस्मै “य” काराय नमः शिवाय ॥ 5 ॥
पंचाक्षरमिदं पुण्यं यः पठेच्छिव सन्निधौ ।
शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते ॥
।। श्रीरुद्राष्टकम ।।
नमामीशमीशान निर्वाणरूपं, विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपं।
निजंनिर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं, चिदाकाशमाकाशवासं भजे हं ॥1॥
निराकारमोंकारमूलं तुरीयं, गिरा ग्यान गोतीतमीशं गिरीशं।
करालं महाकाल कालं कृपालं, गुणागार संसारपारं नतो हं ॥2॥
तुषाराद्रि संकाश गौरं गम्भीरं, मनोभूत कोटि प्रभा श्री शरीरं।
स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारुगंगा, लसद्भालबालेन्दु कण्ठे भुजंगा ॥3॥
चलत्कुण्डलं भ्रू सुनेत्रं विशालं, प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालं।
मृगाधीशचर्माम्बरं मुण्डमालं, प्रियं शंकरं सर्वनाथं भजामि ॥4॥
प्रचण्डं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं, अखण्डं अजं भानुकोटिप्रकाशम्।
त्रय: शूल निर्मूलनं शूलपाणिं, भजे हं भवानीपतिं भावगम्यं ॥5॥
कलातीत कल्याण कल्पांतकारी, सदासज्जनानन्ददाता पुरारी।
चिदानन्द संदोह मोहापहारी, प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी ॥6॥
न यावद् उमानाथ पादारविंदं, भजंतीह लोके परे वा नराणां।
न तावत्सुखं शान्ति सन्तापनाशं, प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासं ॥7॥
न जानामि योगं जपं नैव पूजां, नतो हं सदा सर्वदा शम्भु तुभ्यं।
जराजन्म दु:खौघ तातप्यमानं, प्रभो पाहि आपन्न्मामीश शंभो ॥8॥
रुद्राष्टकमिदं प्रोक्तं विप्रेण हरतोषये।
ये पठन्ति नरा भक्तया तेषां शम्भु: प्रसीदति
॥इति श्री गोस्वामी तुलसिदास कृतम श्रीरुद्राष्टकम संपूर्णम्॥
।। श्री सूक्तं ।।
हिरण्यवर्णां हरिणीं सुवर्णरजतस्त्रजाम् ।
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह ।। ।।१।।
तांमआवह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम्
यस्यां हिरण्यं विन्देयं गामश्वं पुरुषानहम् ।। ।।२।।
अश्वपूर्वां रथमध्यां हस्तिनाद्प्रबोदिनीम् ।
श्रियं देविमुप हव्ये श्रीर्मा देवी जुषताम ।।३।।
कांसोस्मितां हिरण्य्प्राकारामार्द्रां ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीम् ।
पद्मेस्थितां पदमवर्णां तामिहोप हवये श्रियम् ।।४।।
चन्द्रां प्रभासां यशसा ज्वलन्ती श्रियं लोके देवजुष्टामुदाराम् ।
तां पद्मिनीमी शरणं प्रपधे अलक्ष्मीर्मे नश्यतां त्वां वृणे ।।५।।
आदित्यवर्णे तप्सड़धि जातो वनस्पतिस्तव वृक्षोsथ बिल्वः ।
तस्य फलानि तपसा नुदन्तु या अन्तरा याष्च बाह्य अलक्ष्मीः ।।६।।
उपैतु मां देवसखः कीर्तिश्च मणिना सह ।
प्रदुर्भूतोsस्मि राष्ट्रेsस्मिन कीर्तिमृद्धिं ददातु में ।।७।।
क्षुत्पिपासामलां ज्येष्ठमलक्ष्मीं नाशयाम्यहम् ।
अभूतिमसमृद्धि च सर्वां निर्णुद में गृहात् ।।८।।
गन्धद्वारां दुराधर्षां नित्यापुष्टां करीषिणीम् ।
ईश्वरीं सर्वभूतानां तामिहोप हवये श्रियम् ।।९।।
मनसः काममाकूतिं वाचः सत्यमशीमहि ।
पशुनां रूपमन्नस्य मयि श्रियं श्रयतां यशः ।।१०।।
कर्दमेन प्रजा भूता मयि संभव कर्दम ।
श्रियम वास्य मे कुले मातरं पद्ममालिनीम् ।।११।।
आपः सृजन्तु स्निग्धानि चिक्लीत वस् मे गृहे ।
नि च देवीं मातरं श्रियं वासय मे कुले ।।१२।।
आद्रॉ पुष्करिणीं पुष्टिं पिंगलां पदमालिनीम् ।
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मी जातवेदो म आ वह ।।१३।।
आद्रां यः करिणीं यष्टिं सुवर्णां हेममालिनीम् ।
सूर्यां हिरण्मयीं लक्ष्मी जातवेदो म आ वह ।।१४।।
तांम आवह जातवेदो लक्ष्मी मनपगामिनीम् ।
यस्यां हिरण्यं प्रभूतं गावो दास्योsश्रान विन्देयं पुरुषानहम् ।।१५।।
यः शुचिः प्रयतो भूत्वा जुहुयादाज्यमन्वहम् ।
सूक्तं पञ्चदशर्च च श्रीकामः सततं जपेत् ।।१६।।
|| श्रीललितासहस्रनामस्तोत्रम् ||
श्रीमाता श्रीमहाराज्ञी श्रीमत्सिहासनेश्वरी, चिदग्निकुण्डसम्भूता देवकार्यसमुद्यता ||१||
उद्यद्भानुसहस्राभा चतुर्बाहु समन्विता, रागस्वरूपपाशाढ्या क्रोधाकाराङ्कुशोज्ज्वला ||२||
मनोरूपेक्षुकोदण्डापञ्चतन्मात्र सायका, निजारुणप्रभापूर मज्जद्ब्रह्माण्डमण्डला ||३||
चम्पकाशोकपुन्नागसौगन्धिकलसत्कचा कुरुविन्दमणिश्रेणीकनत्कोटीरमण्डिता ||४||
अष्टमीचन्द्र विभ्राजदलिकस्थलशोभिता, मुखचन्द्र कलङ्काभमृगनाभिविशेषका ||५||
वदनस्मर माङ्ंगल्यगृहतोरणचिल्लिका, वक्त्रलक्ष्मी परीवाहचलन्मीनाभलोचना ||६||
नवचम्पक पुष्पाभनासादण्ड विराजिता ताराकान्तितिर स्कारिनासाभरणभासुरा ||७||
कदम्बमञ्जरी क्लृप्तकर्णापूरमनोहरा, ताटङ्कयुगलीभूततपनोडुपमण्डला ||८||
पद्मरागशिलादर्शपरिभाविक पोलभूःनवविद्रुमबिम्बश्रीन्यक्कारिरदनच्छदा ||९||
शुद्धविद्याकुराकार द्विजपङ्क्तिद्वयोज्ज्वला, कर्पूरवीटिकामोदसमाकर्षिदिगन्तरा ||१०||
निजसंलापमाधुर्य विनिर्भत्सितकच्छपी, मन्दस्मितप्रभापूर मज्जत्कामेशमानसा ||११||
अनाकलितसादृश्यचु बुकश्रीविराजिता, कामेशबद्ध माङ्गल्यसूत्रशोभितकन्धरा ||१२||
कनकाङ्गद केयूरकमनीयभुजान्विता, रत्नग्रैवेयचिन्ताकलोलमुक्ताफलान्विता ।।१३।।
कामेश्वरप्रेमरत्न मणिप्रतिपणस्तनी, नाभ्यालवालरोमा ललिताफलकुचद्वयी ||१४||
लक्ष्यरोमलता धारतासमुन्नेय मध्यमा, स्तनभार दलन्मध्यपट्ट बन्धवलित्रया ||१५||
अरुणारुणकौसुम्भ वस्त्रभास्वत्कटीतटी, रत्नकिङ्किणि कॉरम्यरशनादामभूषिता ||१६||
कामेशज्ञातसौभाग्य मार्दवोरुद्धयान्विता, माणिक्य मुकुटाकार जानुद्धयविराजिता ||१७||
इन्द्र गोपपरिक्षिप्तस्मर तूणाभजङ्धिका, गूढगुल्फा कूर्मपृष्ठजयिष्णु प्रपदान्विता ||१८||
नखदीधितिसंछन्ननमज्जनतमोगुणा, पदद्वय प्रभाजालपाकृतसरोरुहा ||१९||
शिञ्जानमणिमञ्जीर मण्डित श्रीपदाम्बुजा, मरालीमन्दगमना महालावण्यशेवधिः ||२०||
सर्वारुणानवद्याङ्गी सर्वाभरणभूषिता, शिवकामेश्वराङ्कस्था शिवास्वाधीनवल्लभा ||२१||
सुमेरुमध्य श्रृङ्गस्था श्रीमनगर नायिका चिन्तामणिगृहान्तस्था पञ्चब्रह्मासनस्थिता ||२२||
महापद्माटवीसंस्था कदम्बवनवासिनी, सुधासागरमध्यस्था कामाक्षी कामदायिनी ||२३||
देवर्षिगणसंघातस्तूयमानात्मवैभवा, भण्डासुरवधोद्युक्तशक्ति सेनासमन्विता ||२४||
संपत्करी समारूढसिन्धुरव्रजसेविता, अश्वारूढाधिष्ठिताश्वकोटिकोटिभिरावृता ||२५||
चक्रराजरथारूढ सर्वायुधपरिष्कृता:, गेयचक्ररथारूढ मन्त्रिणीपरिसेविता ||२६||
किरिचक्ररथारूढ दण्डनाथापुरस्कृता, ज्वालामालिनिकाक्षिप्तवन्हिप्राकारमध्यगा ||२७||
भण्डसैन्यवधोद्युक्तं शक्तिविक्रमहर्षिता, नित्यापराक्रमाटोपनिरीक्षणसमुत्सुका ||२८||
भण्डपुत्रवधोद्युक्त बालाविक्रमनन्दिता, मन्त्रिण्यम्बाविरचितविषङ्गवधतोषिता ||२९||
विशुक्रप्राणहरण वाराहीवीर्य नन्दिता, कार्मेश्वर मुखालोककल्पित श्रीगणेश्वरा ||३०||
महागणेश निर्भिनविघ्नयन्त्रप्रहर्षिता, भण्डासुरेन्द्र निर्मुक्त शस्त्रप्रत्यस्त्रवर्षिणी ||३१||
कराङ् गुलिनखोत्पश्ननारायणदशाकृतिः, महापाशुपतास्त्राग्निनिर्दग्धासुर सैनिका ||३२||
कामेश्वरास्त्र निर्दग्ध्स भण्डासुरशून्यका, ब्रह्मोपेन्द्र महेन्द्रादि देवसंस्तुतवैभवा ||३३||
हरनेत्राग्निसंद ग्धकामसजीवनौषधिः, श्रीमद्वाग्भवकूटैक स्वरूपमुखपङ्कजा ||३४||
कंण्ठाधःकटिपर्यन्त मध्यकूट स्वरूपिणी, शक्तिकूटैकतापन्नकट्यध्ते भागधारिणी ||३५||
मूलमन्त्रात्मिका मूलकूटत्रयूकलेवरा, कुलामृतैक रसिकाकुलेसंकेतपालिनी ||३६||
कुलाङ्गना कुलान्तस्था कौलिनी कुलयोगिनी, अकुला समयान्तस्था समयाचारतत्परा ||३७||
मूलाधारैकनिलया ब्रह्मग्रन्थिविभेदिनी, मणिपूरान्तरुदिता विष्णुग्रन्थिविभेदिनी ||३८||
आज्ञाचक्रान्तरालस्था रुद्रग्रन्थिविभेदिनी, सहस्राराम्बुजारूढा सुधासाराभिवर्षिणी ||३९||
तटिल्लूतासमरुचिः षट्चक्रोपरिसंस्थिता, महाशक्तिः कुण्डलिनी बिसतन्तुतनीयसी ।।४०।।
भवानी भावनागम्या भवारण्यकुठारिका, भद्रप्रिया भद्रमूर्ति र्भक्तसौभाग्यदायिनी ।।४१।।
भक्तिप्रिया भक्तिगम्या भक्तिवश्या भयापहा, शांभवी शारदाराध्या शर्वाणी शर्मदायिनी ।/४२/
शांकरी श्रीकरी साध्वी शरच्चन्द्रनिभानना, शातोदरी शान्तिमती निराधारा निरञ्जना ||४३||
निर्लेपा निर्मला नित्या निराकारा निराकुला, निर्गुणा निष्कला शान्ता निष्कामा निरुपप्लवा ।।४४।।
नित्यमुक्ता निर्विकारा निष्प्रपञ्चा निराश्रया, नित्यशुद्धा नित्यबुद्धा निरवद्या निरन्तरा ||४५ ||
निष्कारणा निष्कलङ्का निरुपाधिर्निरीश्वरा, नीरागा रागमथना निर्मदा मदनाशिनी ||४६ //
निश्चिन्ता निरहंकारा निर्मोहा मोहनाशिनी, निर्ममा ममताहन्त्री निष्पापा पापनाशिनी ||४७ ।।
निष्क्रोधा क्रोधशमनी निर्लोभां लोभनाशिनी, निःसंशया संशयघ्नी निर्भवा भवनाशिनी ।।४८।।
निर्विकल्पा निराबाधा निर्भेदा भेदनाशिनी, निर्नाशा मृत्युमथनी निष्क्रिया निष्परिग्रहा ।। ४९ ।।
निस्तुला नीलचिकुरा निरपाया निरत्यया, दुर्लभा दुर्गमा दुर्गा दु:खहन्त्री सुखप्रदा //५०//
दुष्टदूरा दुराचार शमनी दोषवर्जिता, सर्वज्ञा सान्द्रकरुणा समानाधिकवर्जिता ।।५१//
सर्वशक्तिमयी सर्वमङ्गला सद् गतिप्रदा, सर्वेश्वरी सर्वमयी सर्वमन्त्र स्वरूपिणी।।५२।।
सर्वयन्त्रात्मिकासर्व तन्त्ररूपामनोन्मनी, माहेश्वरी महादेवी महालक्ष्मीमृडप्रिया //५३//
महारुपा महापूज्या महापातक नाशिनी, महामाया महासत्त्वा महाशक्तिर्महारति: ।।५४।।
महाभोगा महैश्वर्या महावीर्या महाबला, महाबुद्धि र्महासिद्धि र्महायोगेश्वरेश्वरी //५५//
महातन्त्रा महामन्त्रा महायन्त्रा महासना, महायाग क्रमाराध्या महाभैरवपूजिता //५६//
महेश्वर महाकल्प महाताण्डवसाक्षिणी, महाकामेश महिषी महात्रिपुरसुन्दरी //५७//
चतुःषष्टंयुपचाराढ्या चतुःषष्टि कलामयी, महाचतुःषष्टि कोटियोगिनीं गणसेविता ।।५८।।
मनुविद्या चन्द्र विद्या चन्द्रमण्डलमध्यगा, चारुरूपा चारुहासा चारुचन्द्र कलाधरा //५९//
चराचरजगनाथा चक्रराजनिकेतना, पार्वतीपद्मनयना पद्मरागसमप्रभा ।।६०।।
पञ्चप्रेतासनासीना पञ्चब्रह्मस्वरूपिणी, चिन्मयीपरमानन्दा विज्ञानघनरूपिणी ।।६१।।
ध्यानध्यातृध्येयरूपा धर्माधर्मविवर्जिता, विश्वरूपाजागरिणी स्वपन्तीतैजसात्मिका ।।६२।।
सुप्ताप्राज्ञात्मिकातुर्या सर्वावस्थाविवर्जिता, सृष्टिकर्त्रीब्रह्मरूपा गौत्रीगोविन्दरूपिणी ।।६३।।
संहारिणीरुद्ररुपा तिरोधानकरीश्वरी, सदाशिवानुग्रहदा पञ्चकृत्यपरायणा ।।६४।।
भानुमण्डलमध्यस्था भैरवी भगमालिनी, पद्मासना भगवती पद्मनाभसहोदरी ।।६५।।
उन्मेषनिमिषोत्पश्न विपक्षूभुवनावलिः, सहस्रशीर्षवदना सहस्राक्षी सहस्रपात् ॥६६॥
आब्रह्मकीटजननी वर्णाश्रमविधायिनी, निजाज्ञारूपनिगमा पुण्यापुण्यफलप्रदा ।।६७।।
श्रुतिसीमन्तसिन्दूरी कृतपादाब्जधूलिका, सकलागमसंदोह शुक्तिसंपुट मौक्तिका ।।६८।।
पुरुषार्थप्रदापूर्णा भोगिनीभुवनेश्वरी, अम्बिका नादिनिधना हरिब्रह्मेन्द्र सेविता ।।६९।।
नारायणी नादरुपा नामरूपविवर्जिता, ह्रींकारी हीमती हृद्या हेयोपादेयवर्जिता ।।७०।।
राजराजार्चिता राज्ञी रम्याराजीवलोचना, रञ्जनी रमणी रस्या रणत्किङ्किणिमेखला ।।७१।।
रमाराकेन्दुवदना रतिरूपा रतिप्रिया, रक्षाकरी राक्षसध्नी रामा रमणलम्पटा ।।७२।।
काम्या कामकलारूपा कदम्ब कुसुमप्रिया, कल्याणी जगतीकन्दा करुणारससागरा ।।७३।।
कलावती कलालापा कान्ता कादम्बरीप्रिया, वरदा वामनयना वारुणीमद विन्हला ।।७४।।
विश्वाधिका वेदवेद्या विन्ध्याचलनिवासिनी, विधात्री वेदजननी विष्णुमाया विलासिनी ।।७५।।
क्षेत्र स्वरूपा क्षेत्रक्षेत्रज्ञपालिनी, क्षयवृद्धिविनिर्मुक्ता क्षेत्रपालसमर्चिता ।।७६।।
विजयाविमलावन्द्या वन्दारुजनवत्सला, वाग्वादिनी वामकेशी वन्हिमण्डलवासिनी ।।७७।।
भक्तिमत्कल्पलतिका पशुपाशविमोचिनी, संहृताशेषपाषण्डा सदाचारप्रवर्तिका ।।७८।।
तापत्रयाग्निसंतप्त समाहलादनर्चन्द्रिका, तरुणीतापसाराध्या तनुमध्या तमोङपहा ।।७९।।
चितिस्तत्पदलक्ष्यार्था चिदेकरसरूपिणी, स्वात्मानन्दलवीभूतब्रह्माद्यानन्दसन्ततिः ।।८०।।
परा प्रत्यक् चितीरूपा पश्यन्ती परदेवता, मध्यमा वैखरीरूपा भक्तमानसहंसिका ।।८१।।
कामेश्वर प्राणनाडी कृतज्ञा कामपूजिता, श्रृङ्गाररससंपूर्णा जया जालन्धरस्थिता ।।८२।।
ओड्याणपीठ निलया बिन्दु मण्डलवासिनी, रहोयागक्रमाराध्या रहस्तर्पणतर्पिता ।।८३।।
सद्यःप्रसादिनी विश्वसाक्षिणी साक्षिवर्जिता, षडङ्गदेवतायुक्ता षाड्गुण्यपरिपूरिता ।।८४।।
नित्यक्लिन्ना निरुपमा निर्वाणसुखदायिनी, नित्याषोडशिकारूपा श्रीकण्ठार्धशरीरिणी ।।८५।।
प्रभावती प्रभारूपा प्रसिद्धा परमेश्वरी, मूलप्रकृतिरव्यक्ता व्यक्ताव्यक्तस्वरूपिणी ।।८६।।
व्यापिनी विविधाकारा विद्याविद्यास्वरूपिणी, महाकामे शनयनकुमुदाह्लाद कौमुदी ।।८७।।
भक्त हार्द तमोभेद भानुमद् भानु सन्ततिः, शिवदूती शिवाराध्या शिवमूर्तिः शिवंकरी ।।८८।।
शिवप्रिया शिवपरा शिष्टेष्टा शिष्ट पूजिता, अप्रमेया स्वप्रकाशा मनोवाचामगोचरा ।।८९।।
चिच्छंक्तिश्चेतनारूपा जड शक्तिर्जडात्मिका, गायत्री व्याहृतिरू संध्या द्विजवृन्दनिषेविता ।।९०।।
तत्त्वासना तत्त्वमयी पञ्चकोशान्तरस्थिता, निःसीममहिमा नित्ययौवना मदशालिनी ।।९१ ।।
मदघूर्णितर काक्षी मदपाट लगण्ड भूः, चन्दनद्रवदिग्धाङ्गी चाम्पेय कुसुमप्रिया ।।९२।।
कुशला कोमलाकारा कुरुकुल्ला कुलेश्वरी, कुलकुण्डालया कौलमार्गतत्परसेविता ।।९३।।
कुमार गणनाथाम्बा तुष्टिः पुष्टिर्मतिर्धृतिः, शान्तिः स्वस्तिमती कान्तिर्नन्दिनी विघ्ननाशिनी ।।९४।।
तेजोवती त्रिनयना लोलाक्षी कामरूपिणी, मालिनी हंसिनी माता मलयाचलवासिनी ।।९५।।
सुमुखी नलिनी सुभूः शोभना सुरनायिका, कालकण्ठी कान्तिमती क्षोभिणी सूक्ष्मरूपिणी ।।९६।।
वज्रेश्वरी वामदेवी वयोडवस्थाविवर्जिता, सिद्धेश्वरी सिद्धविद्या सिद्धमाता यशस्विनी ।।९७।।
विशुद्धि चक्रनिलया रक्तवर्णा त्रिलोचना, खट्वाङ्गादिप्रहरणा वदनैकसमन्विता ।।९८।।
पायसानप्रिया त्ववस्था पशुलोक भयंकरी, अमृतादिमहाशक्तिसंवृता डाकिनीश्वरी ।।९९।।
अनाहताब्जनिलया श्यामाभा वदनदया, दंष्ट्रोज्ज्वलाक्षमालादिधरा रुधिरसंस्थिता ।।१००।।
कालरात्र्यादि शक्त्यौ घवृता स्निग्धौदनप्रिया, महावीरेन्द्रवरदा राकिण्यम्बास्वरूपिणी ।।१०१।।
मणिपूराब्जनिलया वद नत्रयसंयुता, वज्रादिकायुधोपेता डामर्यादिभिरावृता ।।१०२।।
रक्तवर्णा मांसनिष्ठा गुडान्नप्रीतमानसा, समस्तभक्तसुखदा लाकिन्यम्बास्वरूपिणी ।।१०३।।
स्वाधिष्ठानाम्बुजगता चतुर्वकामनोहरा, शूलाद्यायुधसंपन्ना पीतवर्णातिगर्विता ।।१०४।।
मेदोनिष्ठा मधुप्रीता बन्धिन्यादिसमन्विता, दध्यन्नासक्तहृदया काकिनीरूपधारिणी ।।१०५।।
मूलाधाराम्बुजारूढा पञ्चवक्त्रास्थिसंस्थिता, अंकुशादिप्रहरणा वरदादिनिषेविता ।।१०६।।
मुद्गौदनासक्तचित्ता साकिन्यम्बास्वरूपिणी, आज्ञाचक्राब्जनिलया शुक्लवर्णा षडानना ।।१०७।।
मज्जासंस्था हंसवतीमुख्य शक्ति समन्विता, हरिद्रान्नैकरसिका हाकिनीरूपधारिणी ।।१०८।।
सहस्त्र लपद्मस्था सर्ववर्णोपशोभिता, सर्वायुधधरा शुक्लसंस्थिता सर्वतोमुखी ।।१०९।।
सर्वोदनप्रीतचित्ता याकिन्यम्बास्वरूपिणी, स्वाहा स्वधामतिर्मेधा श्रुतिस्मृतिरनुत्तमा ।।११०।।
पुण्यकीर्तिः पुण्यलभ्या पुण्यश्रवणकीर्तना, पुलोमजार्चिता बन्धमोचनी बंधुरालका ।।१११।।
विमर्शरूपिणी विद्या वियदादिजगत्प्रसूः, सर्वव्याधिप्रशमनी सर्वमृत्युनिवारिणी ।।११२।।
अग्रगण्याचिन्त्यरूपा कलिकल्मषनाशिनी, कात्यायनी कालहन्त्री कमलाक्षनिषेविता ।।११३।।
ताम्बूलपूरितमुखी दाडिमीकुसुमप्रभा, मृगाक्षी मोहिनी मुख्या मृडानी मित्ररूपिणी ।।११४।।
नित्यतृप्ता भक्तिनिधिर्नियन्त्री निखिलेश्वरी, मैत्र्यादिवासनालभ्या महाप्रलयसाक्षिणी ।।११५।।
पराशक्तिः परानिष्ठा प्रज्ञानघनरूपिणी, माध्वीपानालसा मत्ता मातृकावर्णरूपिणी ।।११६।।
महाकैलासनिलया मृणालमृदुदोर्लता, महनीया दयामूर्ति महासाम्राज्यशालिनी ।।११७।।
आत्मविद्या महाविद्या श्रीविद्या कामसेविता, श्रीषोडशाक्षरीविद्या त्रिकूटा कामकोटिका ।।११८।।
कटाक्षकिङ्करीभूतकमलाकोटिसेविता, शिरःस्थिता चन्द्रनिभा भालस्थेन्द्रधनुः प्रभा ।।११९।।
हृदयस्था रविप्रख्या त्रिकोणान्तरदीपिका, दाक्षायणी दैत्यहन्त्री दक्षयज्ञविनाशिनी ।।१२०।।
दरान्दोलितदीर्घाक्षी दरहासोज्ज्वलन्मुखी, गुरुमूर्तिर्गुणनिधिगमाता गुहजन्मभूः ।।१२१ ।।
देवेशी दण्डनीतिस्था दहराकाशरूपिणी, प्रतिपन्मुख्यराकान्ततिथिमण्डलपूजिता ।। १२२ ।।
कलात्मिका कलानाथा काव्यालापविनोदिनी, सचामरर मावाणीसव्यदक्षिणसेविता ।।१२३।।
आदिशक्तिरमेयात्मा परमा पावनाकृतिः, अनेककोटिब्रह्माण्डजननी दिव्यविग्रहा ।।१२४।।
क्लींकारी केवला गुह्या कैवल्यपददायिनी, त्रिपुरा त्रिजगद्वन्द्या त्रिमूर्तिस्त्रिदशेश्वरी ।।१२५।।
त्र्यक्षरी दिव्यगन्धाढ्या सिन्दूरतिलकाञ्चिता, उमा शैलेन्द्रतनया गौरी गन्धर्वसेविता ।।१२६।।
विश्वगर्भा स्वर्णगर्भा वरदा वागधीश्वरी, ध्यानगम्या परिच्छेद्या ज्ञानदा ज्ञानविग्रहा ।।१२७।।
सर्ववेदान्त संवेद्या सत्यानन्द स्वरूपिणी, लोपामुद्रार्चिता लीलाक्लृप्तब्रह्माण्डमण्डला ।।१२८।।
अदश्या दृश्यरहिता विज्ञात्री वेद्यवर्जिता, योगिनी योगदा योग्या योगानन्द युगन्धरा ।।१२९।।
इच्छाशक्ति ज्ञानशक्ति क्रियाशक्ति स्वरूपिणी, सर्वाधारा सुप्रतिष्ठा सदसद्रूपधारिणी ।। १३०।।
अष्ठ मूर्तिर जाजैत्री लोकयात्राविधायिनी, एकाकिनी भूमरूपा निर्देता द्वैतवर्जिता ।।१३१।।
अन्नदा वसुदा वृद्धा ब्रह्मात्मैक्यस्वरूपिणी, बृहती ब्राह्मणी ब्राह्मी ब्रह्मानन्दा बलिप्रिया ।। १३२ ।।
भाषारूपा बृहत्सेना भावाभावविवर्जिता, सुखाराध्या शुभकरी शोभनासुलभागतिः ।। १३३ ।।
राजराजेश्वरी राज्यदायिनी राज्यवल्लभा, राजत्कृपा राजपीठनिवेशितनिजाश्रिता ।। १३४।।
राज्यलक्ष्मीरू कोशनाथा चतुरङ्गबलेश्वरी, साम्राज्यदायिनी सत्यसन्धा सागरमेखला ।।१३५।।
दीक्षिता दैत्यशमनी सर्वलोकवशंकरी, सर्वार्थदात्री सावित्री सच्चिदानन्दरूपिणी ।।१३६।।
देशकालापरिच्छिन्ना सर्वगा सर्वमोहिनी, सरस्वती शास्त्रमयी गुहाम्बा गुह्यरूपिणी ।।१३७।।
सर्वोपाधिविनिर्मुक सदाशिवपतिव्रता, संप्रदायेश्वरी साध्वी गुरुमण्डलरूपिणी ।।१३८।।
कुलोत्तीर्णा भगाराध्या भगाराध्या माया मधुमती मही, गणाम्बा गुह्यकाराध्या कोमलाङ्गी गुरुप्रिया ।।१३९।।
स्वतन्त्रा सर्वतन्त्रेशी दक्षिणामूर्तिरूपिणी, सनकादिसमाराध्या शिवज्ञानप्रदायिनी ।।१४०।।
चित्कलानन्द कलिका प्रेमारूपा प्रियंकरी, नामपारायणप्रीता नन्दिविद्या नटेश्वरी ।।१४१।।
मिथ्याजगदधिष्ठाना मुक्तिदा मुक्तिरूपिणी, लास्यप्रिया लयकरी लज्जा रम्भादिवन्दिता ।।१४२।।
भवदावसुधावृष्टि रू पापार ण्यद वानला, दौर्भाग्यतूलवातूला जराध्वान्तरविप्रभा ।।१४३।।
भाग्याब्धिचन्द्रिका भक्तचित्तके कि घनाघना, रोगपर्वतदम्भोलिर्मृत्युदारुकुठारिका ।।१४४।।
महेश्वरी महाकाली महाग्रासा महाशना, अपर्णा चण्डिका चण्डमुण्डासुरनिषूदनी ।।१४५।।
क्षराक्षरात्मिका सर्वलोके शी विश्वधारिणी, त्रिवर्गदात्री सुभगा त्र्यम्बका त्रिगुणात्मिका ।।१४६।।
स्वर्गापवर्गदा शुद्धा जपापुष्पनिभाकृतिः, ओजोवती द्युतिधरा यज्ञरूपा प्रियव्रता ।।१४७।।
दुराराध्या दुराधर्षा पाट लीकु सुमप्रिया, महती मेरुनिलया मन्दारकु सुमॅप्रिया ।।१४८।।
वीराराध्या विराङ्ख्पा विरजा विश्वतोमुखी, प्रत्यग्रूपा पराकाशां प्राणदा प्राणरूपिणी ।।१४९।।
मार्ताण्ड भैरवाराध्या मन्त्रिणीन्यस्तराज्यधूः, त्रिपुरेशी जयत्सेना निस्त्रैगुण्या परापरा ।।१५०।।
सत्यज्ञानानन्द रूपा सामरस्थ परायणा, कपर्दिनी कलामाला कामधुक्कामरूपिणी ।।१५१।।
कलानिधिः काव्यकला रसज्ञा रसशेवधिरू, पुष्टा पुरातना पूज्या पुष्करा पुष्करेक्षणा ।।१५२।।
परं ज्योतिः परं धाम परमाणुः परात्परा, पाशहस्ता पाशहन्त्री परमन्त्रविभैदिनी ।।१५३।।
मूर्तीमूर्ताड नित्यतृप्ता मुनिमानसहंसिका, सत्यव्रता सत्यरूपा सर्वान्तर्यामिणी सती ।।१५४।।
ब्रह्माणी ब्रह्मजननी बहुरूपां बुधार्चिता, प्रसवित्री प्रचण्डाज्ञा प्रतिष्ठा प्रकटाकृतिः ।।१५५।।
प्राणेश्वरी प्राणदात्री पञ्चाशत्पीठ रूपिणी, विश्रृङ्खला विविक्तस्था वीरमाता वियत्प्रसूः ।।१५६।।
मुकुन्दा मुक्तिनिलया मूलविग्रहरूपिणी, भावज्ञा भवरोगघ्नी भवचक्रप्रवर्तिनी ।।१५७।।
छन्दसारा शास्त्रसारा मन्त्रसारा तलोदरी, उदार कीर्तिरुद्दामवैभवा वर्णरूपिणी ।।१५८।।
जन्ममृत्युजरातप्त जनविश्रान्तिदायिनी, सर्वोपनिषदुद्घष्टा शान्त्यतीतकलात्मिका ।। १५९।।
गम्भीरा गगनान्तस्था गर्विता गानलोलुपा, कल्पनारहिता काष्ठाकान्ता कान्तार्धविग्रहा ।।१६०।।
कार्यकारणनिर्मुक्ता कामके लितरङ्गिता, कनत्कनकताटङ्का लीलाविग्रहधारिणी ।।१६१।।
अजा क्षयविनिर्मुक्ता मुग्धा क्षिप्रप्रसादिनी, अन्तर्मुखसमाराध्या बहिर्मुखसुदुर्लभा ।।१६२।।
त्रयी त्रिवर्गनिलया त्रिस्था त्रिपुरमालिनी, निरामया निरालम्बा स्वात्मारामा सुधासृतिरू ।।१६३।।
संसारपङ्क निर्मग्नसमुद्धरणपण्डिता, यज्ञप्रिया यज्ञकर्त्री यजमानस्वरूपिणी ।।१६४।।
धर्माधारा धनाध्यक्षा धनधान्यविवर्धिनी, विप्रप्रिया विप्ररूपा विश्वभ्रमणकारिणी ।।१६५।।
विश्वग्रासा विद्रुमाभा वैष्णवी विष्णुरुपिणी, अयोनियनिनिलया कूटस्था कुलरूपिणी ।।१६६।।
वीरगोष्ठीप्रिया वीरा नैष्कर्म्या नादरूपिणी, विज्ञानकलना कल्या विदग्धा बैन्दवासनी ।।१६७।।
तत्त्वाधिका तत्त्वमयी तत्त्वमर्थस्वरूपिणी, सामगानप्रिया सौम्या सदाशिवकुटुम्बिनी ।।१६८।।
सव्यापसव्यमार्गस्था सर्वापद्धि निवारिणी, स्वस्था स्वभावमधुरा धीरा धीरसमर्चिता ।।१६९।।
चैतन्यार्घ्य समाराध्या चैतन्यकु सुमप्रिया, सदोदिता सदातुष्टा तरुणादित्यपाटला ।।१७०।।
दक्षिणादक्षिणाराध्या दरस्मेरमुखाम्बुजा, कौलिनीके वलानर्घ्य कैवल्यपददायिनी ।।१७१।।
स्तोत्रप्रिया स्तुतिमती श्रुतिमंस्तुतवैभवा, मनस्विनी मानवती महेशी मङ्गलाकृतिः ।।१७२।।
विश्वमाता जगद्धात्री विशालाक्षी विरागिणी, प्रगल्भा परमोदारा परमोदा मनोमयी ।।१७३।।
व्योमकेशी विमानस्था वजिणी वामकेश्वरी, पञ्चयज्ञप्रिया पञ्चप्रेतमञ्चाधिशायिनी ।।१७४।।
पञ्चमी पञ्चभूतेशी पञ्चसङ्ख्योपचारिणी, शाश्वती शाश्वतैश्वर्या शर्मदा शम्भुमोहिनी ।।१७५ ।।
धरा धरसुता धन्या धर्मिणी धर्मवर्धिनी, लोकातीता गुणातीता सर्वातीता शमात्मिका ।।१७६।।
बन्धूककुसुमप्रख्या बाला लीलाविनोदिनी, सुमङ्गली सुखकरी सुवेषाढ्या सुवासिनी ।।१७७।।
सुवासिन्यर्चनप्रीताङङ्ग शोभना शुद्धमानसा, बिन्दुतर्पणसन्तुष्टा पूर्वजा त्रिपुराम्बिका ।।१७८।।
दशमुद्रासमाराध्या त्रिपुरा श्रीवशंकरी, ज्ञानमुद्रा ज्ञानगम्या ज्ञानज्ञेयस्वरूपिणी ।।१७९ ।।
योनिमुद्रा त्रिखण्डेशी त्रिगुणाम्बा त्रिकोणगा, अनद्याद्भुतचारित्रा वाञ्छितार्थप्रदायिनी ।।१८०।।
अभ्यासातिशयज्ञाता षडध्वातीतरूपिणी, अव्याजकरुणामूर्तिरज्ञानध्वान्तदीपिका ।।१८१।।
आबालगोपविदिता सर्वानुल्लङ्घ्य शशसना, श्रीचक्रराजनिलया श्रीमत्रिपुरसुन्दरी ।।१८२।।
श्रीशिवा शिवशक्त्यैक्यरूपिणी ललिताम्बिका, एवं श्रीललितादेव्या नाम्नां साहस्रकं जगुः ।।१८३ ।।
।। इति श्रीब्रह्माण्डपुराणे उत्तराखण्डे श्रीहयग्रीवागस्त्यसंवादे
श्री ललितासहस्रनामस्तोत्रकथनं नाम संपूर्णम् ।।
॥ श्री विन्ध्येश्वरी स्तोत्र ॥
निशुम्भ शुम्भ गर्जनी, प्रचण्ड मुण्ड खण्डिनी ।
बनेरणे प्रकाशिनी, भजामि विन्ध्यवासिनी ॥
त्रिशूल मुण्ड धारिणी, धरा विघात हारिणी ।
गृहे-गृहे निवासिनी, भजामि विन्ध्यवासिनी ॥
दरिद्र दुःख हारिणी, सदा विभूति कारिणी ।
वियोग शोक हारिणी, भजामि विन्ध्यवासिनी ॥
लसत्सुलोल लोचनं, लतासनं वरप्रदं ।
कपाल-शूल धारिणी, भजामि विन्ध्यवासिनी ॥
कराब्जदानदाधरां, शिवाशिवां प्रदायिनी ।
वरा-वराननां शुभां, भजामि विन्ध्यवासिनी ॥
कपीन्द्न जामिनीप्रदां, त्रिधा स्वरूप धारिणी ।
जले-थले निवासिनी, भजामि विन्ध्यवासिनी ॥
विशिष्ट शिष्ट कारिणी, विशाल रूप धारिणी ।
महोदरे विलासिनी, भजामि विन्ध्यवासिनी ॥
पुंरदरादि सेवितां, पुरादिवंशखण्डितम् ।
विशुद्ध बुद्धिकारिणीं, भजामि विन्ध्यवासिनीं ॥
॥ इति श्री विन्ध्येश्वरी स्तोत्र सम्पूर्ण ॥
॥ अथ देव्यपराधक्षमापनस्तोत्रम् ॥
न मन्त्रं नो यन्त्रं तदपि च न जाने स्तुतिमहो,
न चाह्वानं ध्यानं तदपि च न जाने स्तुतिकथाः।
न जाने मुद्रास्ते तदपि च न जाने विलपनं,
परं जाने मातस्त्वदनुसरणं क्लेशहरणम्॥1॥
विधेरज्ञानेन द्रविणविरहेणालसतया,
विधेयाशक्यत्वात्तव चरणयोर्या च्युतिरभूत्।
तदेतत् क्षन्तव्यं जननि सकलोद्धारिणि शिवे,
कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति॥2॥
पृथिव्यां पुत्रास्ते जननि बहवः सन्ति सरलाः,
परं तेषां मध्ये विरलतरलोऽहं तव सुतः।
मदीयोऽयं त्यागः समुचितमिदं नो तव शिवे,
कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति॥3॥
जगन्मातर्मातस्तव चरणसेवा न रचिता,
न वा दत्तं देवि द्रविणमपि भूयस्तव मया।
तथापि त्वं स्नेहं मयि निरुपमं यत्प्रकुरुषे,
कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति॥4॥
परित्यक्ता देवा विविधविधसेवाकुलतया,
मया पञ्चाशीतेरधिकमपनीते तु वयसि।
इदानीं चेन्मातस्तव यदि कृपा नापि भविता,
निरालम्बो लम्बोदरजननि कं यामि शरणम्॥5॥
श्वपाको जल्पाको भवति मधुपाकोपमगिरा,
निरातङ्को रङ्को विहरति चिरं कोटिकनकैः।
तवापर्णे कर्णे विशति मनुवर्णे फलमिदं,
जनः को जानीते जननि जपनीयं जपविधौ॥6॥
चिताभस्मालेपो गरलमशनं दिक्पटधरो,
जटाधारी कण्ठे भुजगपतिहारी पशुपतिः।
कपाली भूतेशो भजति जगदीशैकपदवीं,
भवानि त्वत्पाणिग्रहणपरिपाटीफलमिदम्॥7॥
न मोक्षस्याकाङ्क्षा भवविभववाञ्छापि च न मे,
न विज्ञानापेक्षा शशिमुखि सुखेच्छापि न पुनः।
अतस्त्वां संयाचे जननि जननं यातु मम वै,
मृडानी रुद्राणी शिव शिव भवानीति जपतः॥8॥
नाराधितासि विधिना विविधोपचारैः,
किं रुक्षचिन्तनपरैर्न कृतं वचोभिः।
श्यामे त्वमेव यदि किञ्चन मय्यनाथे,
धत्से कृपामुचितमम्ब परं तवैव॥9॥
आपत्सु मग्नः स्मरणं त्वदीयं
करोमि दुर्गे करुणार्णवेशि।
नैतच्छठत्वं मम भावयेथाः
क्षुधातृषार्ता जननीं स्मरन्ति॥10॥
जगदम्ब विचित्रमत्र किं परिपूर्णा करुणास्ति चेन्मयि।
अपराधपरम्परापरं न हि माता समुपेक्षते सुतम्॥11॥
मत्समः पातकी नास्ति पापघ्नी त्वत्समा न हि।
एवं ज्ञात्वा महादेवि यथायोग्यं तथा कुरु॥12॥
॥ इति श्रीशङ्कराचार्यविरचितं देव्यपराधक्षमापनस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥
॥ अथ देव्यपराधक्षमापनस्तोत्रम् ॥
न मन्त्रं नो यन्त्रं तदपि च न जाने स्तुतिमहो,
न चाह्वानं ध्यानं तदपि च न जाने स्तुतिकथाः।
न जाने मुद्रास्ते तदपि च न जाने विलपनं,
परं जाने मातस्त्वदनुसरणं क्लेशहरणम्॥1॥
विधेरज्ञानेन द्रविणविरहेणालसतया,
विधेयाशक्यत्वात्तव चरणयोर्या च्युतिरभूत्।
तदेतत् क्षन्तव्यं जननि सकलोद्धारिणि शिवे,
कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति॥2॥
पृथिव्यां पुत्रास्ते जननि बहवः सन्ति सरलाः,
परं तेषां मध्ये विरलतरलोऽहं तव सुतः।
मदीयोऽयं त्यागः समुचितमिदं नो तव शिवे,
कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति॥3॥
जगन्मातर्मातस्तव चरणसेवा न रचिता,
न वा दत्तं देवि द्रविणमपि भूयस्तव मया।
तथापि त्वं स्नेहं मयि निरुपमं यत्प्रकुरुषे,
कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति॥4॥
परित्यक्ता देवा विविधविधसेवाकुलतया,
मया पञ्चाशीतेरधिकमपनीते तु वयसि।
इदानीं चेन्मातस्तव यदि कृपा नापि भविता,
निरालम्बो लम्बोदरजननि कं यामि शरणम्॥5॥
श्वपाको जल्पाको भवति मधुपाकोपमगिरा,
निरातङ्को रङ्को विहरति चिरं कोटिकनकैः।
तवापर्णे कर्णे विशति मनुवर्णे फलमिदं,
जनः को जानीते जननि जपनीयं जपविधौ॥6॥
चिताभस्मालेपो गरलमशनं दिक्पटधरो,
जटाधारी कण्ठे भुजगपतिहारी पशुपतिः।
कपाली भूतेशो भजति जगदीशैकपदवीं,
भवानि त्वत्पाणिग्रहणपरिपाटीफलमिदम्॥7॥
न मोक्षस्याकाङ्क्षा भवविभववाञ्छापि च न मे,
न विज्ञानापेक्षा शशिमुखि सुखेच्छापि न पुनः।
अतस्त्वां संयाचे जननि जननं यातु मम वै,
मृडानी रुद्राणी शिव शिव भवानीति जपतः॥8॥
नाराधितासि विधिना विविधोपचारैः,
किं रुक्षचिन्तनपरैर्न कृतं वचोभिः।
श्यामे त्वमेव यदि किञ्चन मय्यनाथे,
धत्से कृपामुचितमम्ब परं तवैव॥9॥
आपत्सु मग्नः स्मरणं त्वदीयं
करोमि दुर्गे करुणार्णवेशि।
नैतच्छठत्वं मम भावयेथाः
क्षुधातृषार्ता जननीं स्मरन्ति॥10॥
जगदम्ब विचित्रमत्र किं परिपूर्णा करुणास्ति चेन्मयि।
अपराधपरम्परापरं न हि माता समुपेक्षते सुतम्॥11॥
मत्समः पातकी नास्ति पापघ्नी त्वत्समा न हि।
एवं ज्ञात्वा महादेवि यथायोग्यं तथा कुरु॥12॥
॥ इति श्रीशङ्कराचार्यविरचितं देव्यपराधक्षमापनस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥